बुंदेलखंड का अजर अमर योद्धा आल्हा की ससुराल उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर जिले के चुनारगढ़ में इन दिनों चुनार महोत्सव की धूम है। तीन दिन तक चलने वाले इस महोत्सव का रविवार का आखिरी दिन है। महोत्व में आल्हा और सोनवा के वैवाहिक स्थल सोनवा मंड़प लोगों को सबसे ज्यादा आकर्षित कर रहा है।
तिलस्मी कारनामों से भरपूर चन्द्रकान्ता के चुनारगढ़ में इन दिनों अजब नजारा है। पर्यटन को बढ़ावा देने एवं सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के उद्देश्य से जिलाप्रशासन ने चुनार महोत्सव का आयोजन किया है। उत्तर प्रदेश विंध्य तीर्थ विकास परिषद मुख्य आयोजक है। तीन दिन से जहां एक ओर कलाकार सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर आम जनमानस का मनोरंजन कर रहे हैं, वही लाइट एंड साउंड शो के माध्यम से चुनारगढ़ का इतिहास का एक बार फिर से लोगो के बीच प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।
महोत्सव का मुख्य आकर्षण आल्हा का माडो सोनवा मंडप बना है। मंडप को फूलों से सजा कर भव्यता दी गई है, जो देखते बन रही है। महोबा की किंवदंतियो में वीर अमर आल्हा उदल की कहानी एक पुनः जीवन्त हो उठी है। सोनवा मंडप का एक नाम सोनवा माडो भी है। आल्हा खण्ड के अनुसार राजा सहदेव ने इस किले को सन् 1029 अपनी राजधानी बना दिया और विन्ध्य पहाड़ी की गुफा में नैना योगी की प्रतिमा की स्थापना की और उनके नाम के रूप में नामकरण किया। राजा सहदेव ने 52 अन्य राजाओं पर विजय की याद में 52 खंभे पर आधारित एक पत्थर का छतरी बनाया, किले के अंदर, जो अभी भी संरक्षित है।
उसने अपनी बहादुर बेटी सोनवा की महोबा के तत्कालीन राजा अल्हा के साथ विवाह किया था, जिसकी शादी में सोनव मंडप के नाम से भी संरक्षित रखा गया।महोत्सव को आकर्षण बनाने में कोई कोर कसर नही छोड़ी गई है। बड़े बड़े कलाकार सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे हैं। गीत , संगीत एवं नृत्य की रस वर्षा से सरावोर है । कलाकार अपने कला के माध्यम से इतिहास प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं। गंगा का मैदान प्रदर्शित चुनारगढ़ के विभिन्न स्टालों से भरा पड़ा है। चुनार नगर के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
जिलाधिकारी दिव्या मित्तल ने बताया कि चुनार महोत्सव का मुख्य उद्देश्य पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने का है। महोत्सव पहली बार मनाया जा रहा है। आगे और भव्य आयोजन किया जाएगा।