नई दिल्ली
दिल्ली पुलिस की दो महिला हेड कांस्टेबल ने कुछ ऐसा कर दिया, जिसके बाद उनकी चहुंओर वाहवाही हो रही है। दोनों महिला कांस्टेबल सीमा देवी और सुमन हुड्डा ने पिछले नौ महीनों में 104 गुमशुदा बच्चों को ढूंढ निकालने का सराहनीय काम किया है। मार्च से नवंबर के बीच ‘ऑपरेशन मिलाप’ के तहत उन्होंने हरियाणा,बिहार और यूपी के दूर-दराज के इलाकों का दौरा किया और बच्चों को उनके परिवारों से मिलाया। इस दौरान उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा,जिनमें बच्चों की नई तस्वीरें न होना, भाषा की बाधा,अनजान जगहों पर जाना और स्थानीय लोगों से मदद न मिलना शामिल था। इन मुश्किलों के बावजूद,दोनों ने बच्चों को ढूंढ निकाला और उन्हें उनके परिवारों से मिला दिया।
कई मुश्किलें भी आईं
दिल्ली पुलिस की बाहरी उत्तरी जिला की एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (AHTU) में तैनात, सीमा और सुमन ने बताया कि ‘ऑपरेशन मिलाप’ के तहत मार्च से नवंबर के बीच यह रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया गया। दूर-दराज के इलाकों में उन्हें कई बार नई जगहों और वहां के लोगों से अनजान होने की वजह से दिक्कतों का सामना करना पड़ा। ऐसे में उन्हें स्थानीय पुलिस की मदद लेनी पड़ी।
सीमा देवी ने बताया कि कई बार ऐसा भी हुआ कि जिन नंबरों से बच्चे बात करते थे,वे बंद हो जाते थे। ऐसे में हमने साइबर टीम की मदद से फोन की आखिरी लोकेशन का पता लगाया।
एक मामले को याद करते हुए सीमा ने बताया कि बवाना से एक 13 साल की बच्ची लापता हो गई थी। उसके सबसे छोटे भाई ने हमें बताया कि उसने अलग-अलग नंबरों से फोन करके बताया था कि वह ठीक है। हालांकि,अलग-अलग नंबरों से फोन आने के कारण उसे कुछ गड़बड़ होने का शक था। हमने मामले की जांच की और बच्ची को नोएडा के जारचा इलाके में पाया। वह वहां घर का काम कर रही थी। हमने उसे तुरंत वहां से छुड़ाया।
फोटो से पहचानने में होती थी समस्या
नए इलाकों में,सीमा और सुमन को स्थानीय लोगों का विश्वास जीतने में समय लगता था,जिसके बाद ही वे घर-घर जाकर तलाशी ले पाती थीं। सीमा ने बताया कि पुरानी तस्वीरें होने के कारण कई मौकों पर बच्चों की पहचान करना मुश्किल हो जाता था। जब परिवारों के पास अपने बच्चों की नई तस्वीरें नहीं होती थीं,तो 4 से 17 साल के इन बच्चों की पहचान उनके माता-पिता को खुद आकर करनी पड़ती थी।
मार्च में AHTU में शामिल हुईं सुमन हुड्डा ने कहा कि बच्चों को उनके परिवारों से मिलाकर उन्हें बहुत गर्व और सुकून मिलता है। उन्होंने बताया कि हमारी कोई निश्चित ड्यूटी नहीं होती। जब भी हमें गुमशुदा बच्चों की जानकारी मिलती है,हम तुरंत घर से निकल पड़ते हैं। कई बार तो ऐसा भी होता है कि मैं अपने बच्चों को कई दिनों तक नहीं देख पाती।
कई लोग मदद करने से भी कतराते थे
सुमन ने बताया कि उन गांवों में गुमशुदा बच्चों का पता लगाना बहुत मुश्किल होता है,जहां जाने के लिए कोई रास्ता ही न हो। उन्होंने बताया कि कई बार तो हमें परिवहन के साधनों के अभाव में कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। बहुत से लोग हमारी मदद के लिए तैयार रहते हैं,लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें लगता है कि पुलिस की मदद करने से वे कानूनी पचड़े में पड़ सकते हैं।
सुमन ने बताया कि कैसे उन्हें अक्सर रेलवे स्टेशनों पर भीख मांगने वालों और फेरी वालों से महत्वपूर्ण सुराग मिलते थे। गुमशुदा बच्चों की तस्वीरें दिखाने पर अक्सर उन्हें देखे जाने की जानकारी मिल जाती थी। उन्होंने कहा कि 13 से 17 साल के बच्चे खास तौर पर सोशल मीडिया पर मिले अजनबियों के बहकावे में आ जाते हैं।पुलिस के मुताबिक,बच्चों के लापता होने की वजहों में प्रेम प्रसंग,नशा,माता-पिता की उचित देखभाल न मिलना और शिक्षा की कमी शामिल हैं।
डीसीपी ने कहा- हमें गर्व है
सीमा के खुद के दो बच्चे हैं,जिनकी उम्र 16 और 10 साल है। उन्होंने बताया कि जब मैं कुछ दिनों के लिए घर से बाहर होती हूं,तो मेरा छोटा बेटा मुझे बहुत याद करता है। एक मां होने के नाते,उनका मानना है कि माता-पिता को अपने बच्चों से बात करनी चाहिए और इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे क्या कर रहे हैं। DCP (बाहरी उत्तरी) निधिन वलसन ने कहा कि हमें ‘ऑपरेशन मिलाप’ में सीमा और सुमन की ओर से किए गए असाधारण कार्य पर बहुत गर्व है। उनकी यह उपलब्धि बच्चों की तस्करी से निपटने और अपने समुदाय की रक्षा के लिए हमारे संकल्प को और मजबूत करती है।